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( ३३२ ) पूजा अने निन्दा पूजा तथा निन्दा करनार नैज लागे छे; अर्थात् पूजा तथा निन्दा नुं फल तेना करनार नेज मले छे.
कश्चिद्रवेःसम्मुखमात्मनारजो-ज्यवासिताम्र क्षिपतिक्षमास्थः। तत्सर्वमस्यबसमेतिसम्मुखं,नयातिसूर्यचतयोच्चखं प्रति ॥१६॥ गाथार्थः- पृथ्वी ऊपर रहेल कोई मनुष्य सूर्य सामे पोते धूल अथवा कपूर फेंके तो ते सर्वे एनाज तरफ आवे छे.. सूर्य के प्रकाश ने लागती नथी. विवेचनः-जेम पृथ्वी ऊपर रहेल कोई मनुष्य सूर्य नी सामे धूल अथवा कपूर फेंके छे त्यारे ते धूल तथा कपूर फैकनार तरफज आवे छे. सूर्य तथा आकाश ने लागतां नथी. तेम निर्लेप एवा भगवान ने पूजा तथा निन्दा लागतां नथी परन्तु तेनुं फल पूजा तथा निन्दा करनार ने मले छे. मूलम:यद्वा पुनः कश्चन सार्वभौमःसंस्तौतितस्यैव फलाय स स्यात् । निन्देदथेशंयदिकश्चिदङ्गी,स्यात्सव दुःखोजनतासमक्षम् ॥१७॥ गाथार्थ:-कोई पण मनुष्य ज्यारे चक्रवर्ती राजा नी प्रारीते स्तुति करे छे त्यारे ते स्तुति तेना फल माटे थाय छ, अने निन्दा करे तो जनता समक्ष ते दुःखी थाय छे.