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( २६८ ) स्पर्शथी रहित एवी अरूपी वस्तुओ चर्म चक्षुथी देखी शकती नथी. मूलम् :अतःकिलाकारवतोऽङ्गिनोगजंतद्ङ्गभूतं च यदस्ति वस्तु । दृश्यं तदेवाथन सन्त्यनाकृते-र्जीवस्ययेऽनाकृतयोगुणास्ते ॥३२ गाथार्थः --एटला माटे खरेखर आकार वाला प्राणियोना अंग थी उत्पन्न थयेल तथा प्राणियो नां शरीर ना अंग भूत जे वस्तुप्रो होय ते देखाय छे, परन्तु आत्मा ना अनाकार एवा ज्ञानादि गुणो जोई शकाता नथी. विवेचनः-सुगम छे. मूलम्:इतीयता सिद्धमिदं यदत्र खै-- ह्य तदेव प्रतिगृह्यते तैः । अन्यद्य दाप्तरुदितं तदेव,सत्यं नृणां खानि तुसर्व शिनो।३३ गाथार्थ:--एटलुं कहेवा वड़े सिद्ध थयु के संसार मां जे इन्द्रियो वड़े ग्राह्य होय छे तेज वस्तु ने इन्द्रियो ग्रहण करी शके छे. परन्तु तेना थी भिन्न जे होय ते प्राप्त पुरुषोए कहेल छे, तेज सत्य छे; कारण के लोकोनी इन्द्रियो सर्व जोनार होय छे. विवेचन:-पाटला विस्तार पूर्वक कहेवाथी ए सिद्ध थयु के इन्द्रियो नो जे अने जेटलो विषय होय तेज अने तेटलं