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हाजरी मां तेनी स्थापना, मूत्ति, बावलां, चित्र विगेरे नो उपयोग करे छे अने तेना दर्शन-पूजन द्वारा साक्षात् वस्तु जोया नो अनुभव कहे छे. जेमके सती स्त्री पण पोतानो स्वामी परदेश गयो होय त्यारे तेना पति नी प्रतिमा, चित्र विगेरे ना दर्शन आदि करी तेना पति ना साक्षात् दर्शन नो अनुभव करे छे, तेवीज रीते भगवान नी प्रतिमा ना दर्शनपूजन थी पूजक ने भगवान ना गुणो नुं स्मरण थाय छे. मूलम् - यदन्यशास्त्रेऽपि निशम्यतेऽदः, श्रीरामचन्द्र परदेशसंस्थे। तत्पादुकांसोऽपिचरामवत्तदा-ऽभ्यपूजयत्धीभरतोनरेश्वरः। सीताऽपिरामाङ्गलिमुद्रिकांता-मालिङ ग्यरामाऽप्तिसुखंन्यमस्त रामोऽपिसीताश्रितमौलिरत्न-मासाद्यसीताप्तिरतिव्यजानात्।। गाथार्थ:-अन्य शास्त्र मां पण संभलाय छे के श्री रामचंद्र परदेश मां होते छते श्री भरत राजाए तेमनी पादुका श्री राम नी जेम पूजी हती. सीताजी पण रामचन्द्रजी नी वींटी ने आलिंगन दई रामचंद्रजी नी प्राप्ति ना सुख नो अनुभव करवा लाग्यां. अने रामचंद्रजी पण सीताजो ना मुगट रत्न ने प्राप्त करी सीताजी प्राप्ति ना सुख ने अनुभव करवा लाग्या. विवेचन:-हवे ग्रंथकार श्री अन्य शास्त्रो द्वारा प्रतिमा पूजन संबंधी दृष्टांतो आपी तेज वस्तु ने दृढ़ करतां जणावे