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निरागी अने निस्पृही नी सेवा थी परामर्थ सिद्धिः
सत्यं बुधतत्परमत्र यस्मा-द्विशेष एषोऽभिनिरीक्ष्यते महान् । देवायदेतेकिलसन्तिरागिरणः,पूजाथिनोनोभगवान्सईदृशः।२४ गाथार्थ:-हे पंडित, ए ठीक छे, परन्तु जे कारण थी अहियां घणो भेद देखाय छे के आ देवो खरेखर रागी छे परन्तु आवा प्रकार ना भगवान पूजाना अर्थी नथी. विवेचन:- नास्तिक आस्तिक ने कहे छे के हे पंडित ! आ पूर्वे कहेल वस्तु बराबर छे. परन्तु पहेलां बतावेल बाबत मां पा वीतराग देव बाबत मां मोटो भेद रहेलो छे, केम के तमोए जे दृष्टान्तो आप्यां छे ते तो रागी एवा देवो छे. रागी देवो तो पूजा ना अर्थी होय अने पूजाना अर्थी होवाथी भक्त ऊपर खुश पण थाय अने न पूजा करे तो दुःख पण आपे. परन्तु ा परम ऐश्वर्यशाली वीतराग भगवंत पूजाना अर्थी नथी माटे या दृष्टांत बराबर नथी. मूलम्तदा त्वतीवाऽस्तुवरं यतः स्या-दनीहसेवा परमार्थसिद्धये । यथाहिसिद्धस्यचकस्याचिद्वा, स्पृहावतःसेवनमिष्टलब्धये ।२५ गाथार्थः-तो घणुं सारू. जे कारण थी अनीह नी सेवा परमार्थ नी सिद्धि माटे थाय छे. जेम के निस्पृह एवा सिद्ध पुरुष नी सेवा इष्ट पदार्थ नी सिद्धि माटे थाय छे.