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(३१२) विवेचनः हवे आस्तिक नास्तिक प्रत्ये प्रत्युत्तर आपे छे के तारो प्रश्न पण ठीक छे. परन्तु निस्पृह एवा पुरुष नी सेवा निष्फल जती नथी, कारण के निस्पृह पुरुष नी सेवा थी परमार्थ सिद्धि थाय छे. जेम व्यवहार मां पण कोई निस्पृह एवा सिद्ध पुरुष नी सेवा थी पोतानी इष्ट सिद्धि अथवा इष्ट कार्य सिद्ध थाय छे. तेम निस्पृह एवा वीतराग नी सेवाथी परमार्थ सिद्धि एटले आत्मा ने लाभ थाय छे. - प्रतिमा अज व छतां तेनाथी पुण्य नी सिद्धिः - मूलम्:सिद्धस्तुसाधो! वरिवतिसाक्षादेशोत्वजीवाप्रतिमाप्रतिष्ठिता। नाऽयं विचारः परिपूजनीये,द्रव्ये यतः पूज्यत एव पूज्यः ।२६ गाथार्थः-हे साधु ! आ तो प्रत्यक्ष सिद्धि जणाय छे परन्तु ईश्वर नी प्रतिमा अजीव रहेली छे. तेनो उत्तर छे के पूजन लायक द्रव्य मां आ विचार न करवो, कारण के पूजा ने लायक होवा थी निश्चे पूजाय छे.. विवेचन:-नास्तिक आस्तिक ने कहे छे के आ सिद्ध पुरुष नुं दृष्टांत आप्युं ते बराबर घटतुं नथी. कारण के सिद्ध पुरुष ना दृष्टांत मां तेमनी सेवा थी प्रत्यक्ष सिद्धि देखाय छे. वली सिद्ध पुरुष नो सजीव छ ज्यारे आ ईश्वर नी प्रतिमा तो अजीव छे अने प्रत्यक्ष फल पण देखातुं नथी. तेना उत्तर मां आस्तिक जणावे छे के द्रव्य पूजा ने योग्य