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। ३१५ ) विवेचन:-नास्तिक आस्तिक ने कहे छे के तमारू कथन बराबर छ परन्तु दक्षिणावर्त शंख विगेरे नं दृष्टांत बराबर घटतुं नथी. कारण के दक्षिणावर्त शंख विगेरे पदार्थो अजीव होवा छतां विशिष्ट जाति वाला छे. वली ते वस्तुप्रो. दुःखे करी प्राप्त करी शकाय एवी छे. ते वस्तुप्रो पूजायेली . छती प्राणि प्रोने इच्छित. वस्तु आपे छे, परन्तु परमेश्वर नी प्रतिमा विशिष्ट जाति वाली नथी तथा सुलभ पाषाण थी. बनेली होवाथी दक्षिणावर्त शंख विगेरे नी तुल्य केवी रीते थाय ? माटे या दृष्टांतो बराबर नथी... . मूलम्अहो! विचारिन विचारितं मा, वदस्त्वमेवं जगतीह पश्य । यन्मूलतोवस्तुगुरिणप्रतीतं,ततोऽपियत्पञ्चकृतंःगुणाढ्यम् ।३१ गाथार्थ हे विचारशोल ! तुं अविचरित मत बोल. तुंज पोते आ जगत मां जो के जे वस्तु मूलथीज गुणवाली प्रसिद्ध होय तेने जो पांच मनुष्योए मानेली होय तो ते वधारे गुणवाली थाय छे. विवेचन:- हवे आस्तिक नास्तिक ने प्रत्युत्तर प्रापे छे के दक्षिणावर्त शंखादि विशिष्ट जाति वाला होवाथी अने दुर्लभ होवाथी पूजनीक छे ने इच्छित फल ने आपे छे. परन्तु परमेश्वर संबंधी प्रतिमा विशिष्ट जाति वाली नथी अने सुलभ पाषाण