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विवेचन :- भगवान नी प्रतिमा ना पूजन नो जे विषय बाकी छे तेज वस्तु ने कहे छे के प्रथम प्राकार निराकार संबंधी जे हकीकत कही छे ते रहेवा दो. परन्तु निराकार एवी पण सिद्ध भगवंत नी निर्मल प्रतिमा साक्षात् सिद्ध भगवंत नी जेम तेवा प्रकार नी मन मां विचारेल प्रशा ने निशंक पणे विचारे छे.
मूलम्
यत्स्थापनासास्वकचित्तकल्प्या, सतोऽसतोवास्त्विहवस्तुनः सा । सर्वाऽपियादृग्निजभावसेविता, तादृक् फलंयच्छतिनाऽत्र संशयः । गाथार्थ - जे जे स्थापना होय छे ते पोताना चित्त मां कल्पेली होय छे ते स्थापना या संसार मां सद्वस्तु नी होय के प्रसद्वस्तु नी होय, परन्तु ते सर्वे पण जेवा प्रकार ना पोताना भाव थी सेवायेली होय ते तेवा प्रकार ना फल ने आपे छे, एमां शंका नथी..
विवेचन :- कोई पण वस्तु नी स्थापना करवामां आवे छे त्यारे पोताना मन मां कल्पेल होय तेवा प्रकार नी स्थापना थाय छे. स्थापना ना बे प्रकार छे. एक जे वस्तु जेवी होय तेवा प्रकार नी प्रकृति वाली ते सद्भाव स्थापना; अने जे वस्तु जेवी न होय तेवी कोई पण वस्तु मां जे स्थापना करवामां श्रावे ते असद्भाव स्थापना अथवा विद्यमान वस्तु अथवा