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(३०६) कार्यो नी सिद्धि थाय छे तेज प्रकारे देवाधिदेव नी प्रतिमा पण पूजाएली छती तत्संबंधी कार्यो नी सिद्धि करे छे. विवेचनः-सुगम छे. मूलम्ये कार्मणाकर्षणवेदिनस्तथा, नाम्नव येषां मदनादिपुत्रके । निर्जीवकेतविधिमाचरन्त्यहो, यस्मात्सजीवानपिमूर्छयन्तितान गाथार्थ:- तथा जेनो कामण अने आकर्षण जाणनारा छे ते ओ जीव रहित एवा मदनादि थी बनावेल पुतलां ऊपर जेयोना नाम थी ते विधि आचरे छे ते जीवित एवा तेमने तेथी मछित करे छे. विवेचन:- तेनी स्थापना द्वारा तो कार्य नी सिद्धि थाय तेमां कंइ आश्चर्य नथी परन्तु मात्र नाम वड़े पण केवी असर थाय छे, ते बतावतां कहे छे के जेनो कामण, टूमण, आकर्षण, वशीकरण विगेरे विद्या ना जाणकारो छ तेरो कामण आदि करवा माटे जीव रहित एवा मदनादि थी बनावेल पुतली ऊपर जेना ऊपर कामण आदि करवानुं होय तेना नाम थी ते संबंधी विधि करवामां आवे छे तेथी जीवित एवा तेमने मूर्छा पमाड़े छे, तो शुं अजीव नुं आ फल नथी ? अर्यात् छेज..
नलम:
एवं निजेशप्रतिमामजीवां, तन्नामग्राहं स्तवनां विधाय । समर्चयभिःकुशलःसपर्या, सम्प्रापितोज्ञानमयःप्रमुस्यात् ।२२