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भजन करनार भक्तो नां अज्ञान रूप अंधकार भले नाश करे, परन्तु ते प्रतिमा अजीव होवा थी भक्तो ने फल देनार केम बने ? मूलम्:नैवंत्वजीवाऽपि सतीश्वरार्चा, सचिता पुण्यफलाय नूनम् । त्वंविद्धिचित्तेप्रतिमायदीया,यायासकास्वोत्थगुरणप्रदास्यात्।१७ गाथार्थ:-एम न कहेवं. अजीव पण ईश्वर नी प्रतिमा पूजाती छती निश्चय पुण्य फल माटे थाय छे. तुं तारा हृदय मां जाण के जे संबंधी जे जे प्रतिमा होय छे ते ते प्रतिमा पोताना थी उत्पन्न थयेल गुणो देनार होय छे. विवेचन:- अजीव एवी प्रतिमा फल देनार नथी होती एम तारे न बोलवू, कारण के अजीव एवी ईश्वर नी प्रतिमा पण भक्त जनो वड़े पूजाती छती पोताना भक्तो ने पुण्य फल देनार थाय छे. तुं तारा हृदय मां बराबर जाण के जे जे सम्बन्धी जे जे प्रतिमा होय छे ते प्रतिमा पोताना थी उत्पन्न थयेल गुणो देनार होय छे. अर्थात् पूजन थी पुण्य फल तथा गुणो नी प्राप्ति थाय छे तेमां संशय नथी.
यथा ग्रहाणां प्रतिमा अजीवाः,सत्योऽपितत्पूजनतस्तदीयम् । गुरषं ददत्येव तथा सतोना,क्षेत्राधिपानामथ पूर्वजानाम् ।१८