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छे के रामायण मां पर एक प्रसंग आवे छे के ज्यारे रामचंद्रजी वनवास गया त्यारे तेमना भाई भरतजी नी अनिच्छा छतां पराणे भरतजी ने राज्य गादी सुप्रत करी हती. ते समये रामचंद्रजी प्रत्ये ना भक्ति भाव थी भरतजी राजा होवा छतां पण श्री रामचंद्रजी नी जेम तेमनी पादुका स्थापन करी तेमनी पूजा करता हता. सीताजी पण रामचंद्रजी ना वियोग मां रामचंद्रजी नो वींटी ने प्रालिंगन दई रामचंद्रजी मल्या तुल्य आनन्द अनुभववा लाग्यां अने रामचंद्रजी पण सीताजी ना मुगट- रत्न ने जोवा थी सीताजी नी प्राप्ति तुल्य सुख अनुभववा लाग्यां.
मूल:
नात्राऽस्ति कश्चित्तुतयोः शरीश-कारस्तथापीहतयोस्तथाविधम् । सुखं समायाद्यदजीवतोऽपि, तहश्वरार्चाऽपि सुखाय कि न? | १० गाथार्थ - राम ने सीता ना शरीर नो आकार नथी. ते वस्तु अजीव होवा छतां ते वस्तुओ ने जोई ने ते बन्ने ने सुख नो अनुभव थाय छे. तो ईश्वर नी प्रतिमा पण सुख ना माटे केम न थाय ? अर्थात् थायज. विवेचन :- जेम रामचंद्रजी नी वींटीं मां रामचंद्रजी नो प्राकार होतो अने सीताजी ना मुगट मां सीताजी नो आकार होतो, वली ते बन्ने चीजो अजीव पण हती, छतां रामचंद्रजी तथा सीताजी ने बे ने वस्तुप्रो जोतां मलवा