________________
( ३०४ ) जेटलो आनन्द थयो. तो ईश्वर नी प्रतिमा जड़ होवा छतां तेना दर्शन-पूजन करनार ने केम सुख न थाय? अर्थात् थायज.
इत्थं चरित्रेऽस्ति च पाण्डवानां,यद्रोणसूरिप्रतिमापुरस्तात् । भिल्लकलव्यस्यकिरीटिवद्धनु-विद्यासुसिद्ध तिजगत्प्रतीतम् ।११ गाथार्थ-पांडवोना चरित्र मां ए प्रमाणे छ के भोलों मां श्रेष्ठ एकलव्य नाम ना भीले द्रोणाचार्य नी प्रतिमा आगल धनुष विद्या अर्जुन तुल्य सिद्ध करी एम संसार मां प्रसिद्ध छे. विवेचन:- प्रतिमा नुं महत्व बतावतां कहे छे के महाभारत मां एक एवो प्रसंग छे के एक वखत एकलव्य नाम नो मुख्य भील द्रोणाचार्य नी पासे धनुर्विद्या शीखवा गयो परन्तु तेनुं कुल हलकं होवाथी द्रोणाचार्य तेने धनुर्विद्या शोखः बवानी ना पाड़ी. त्यारे ते एकलव्ये जंगल मां जई त्यां द्रोणाचार्य नी मूर्ति बनावी, तेनी पागल धनुर्विद्या शीखवा लाग्यो. द्रोणाचार्य न होवा छतां तेनी प्रतिमा आगल धनुविद्या शीखी ने अर्जुन तुल्य धनुविद्या नी सिद्धि प्राप्त करी, एम लोक मां प्रसिद्ध छे. मूलम्ः -- तथा च चञ्चादिकवस्त्वजीवं, क्षेत्रादिरक्षाकरणे समर्थम् । छायाऽप्यशोकस्यचशोकहीं,कलेस्तुसास्यात्कलहाय नृणाम् ।