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( २६६ ) विवेचन:-आत्म बोधनुं महत्त्व केटलुं छे ते बतावतां कहे छे के सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान अने सम्यग चारित्र ए मोक्ष नो मार्ग छे. या मोक्ष ना मार्ग रूप सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान अने सम्यग् चारित्र विगेरे बधा गुणो आत्म बोध मांज रहेला छे. तेथो आत्म बोध जगत मां उत्कृष्ट रीतिए जयवंता वर्तो वली आत्म बोध थी सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान अने सम्यग् चारित्र नी शुद्धि पण थाय छे. ते शुद्धि अनंत काल पर्यंत रहे छ, अर्थात् टकी शके छे.
तच्छोधनेऽनन्त चतुष्टयाप्ति-र्यवीयपारप्रतिप्रतिकार्ये ।। ज्ञानंनकस्याऽपिसदाप्रभुस्या-त्सर्वात्मनाकाशदृशीवशाश्वतम्३७ गाथार्थः-ज्ञानादिनी शुद्धि थी अनंत चतुष्टयनी प्राप्ति थाय छे. जे सम्बन्धी पार गमन करवामां आकाश दर्शन नी नेम निरन्तर सर्व स्वरूप थी कया जन ने आत्म बोध समर्थ न थाय ? विवेचन:- सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान अने सम्यग् चारित्र नी शुद्धि पूर्वक आराधना करवाथी आत्मा ना चार भाव प्राण स्वरूप अने मुख्य गुण रूप अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र अने अनंत वीर्य नी प्राप्ति थाय छे,अने अनंत चतुष्टय नो पार पामवा माटे नाकाश दर्शन नी जेम आत्म ज्ञान एटले केवल ज्ञान सिवाय कोण समर्थ छ ? अर्थात् बीजू कोई ज्ञान समर्थ नथी.