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( २६६ ) योगासनालोकनतोहियोगिनां,योगासनाभ्यासमतिःपरिष्यात् । भूगोलतस्तद्गतवस्तुबुद्धिः,स्याल्लोकनालेरिह लोकसंस्थितिः । गाथार्थ:-जेम संपूर्ण अने सारा अंग वाली पुतली जोवाती छती तेवा प्रकार ना राग नुं कारण थाय छे. वली कामी पुरुषो काम नां आसनो नां चित्रोथी काम क्रीडा नी विकृति नो अनुभव करे छे. योग संबंधी आसनो जोवाथी योग ना प्रासन करनारायो ने योग ना आसन ना अभ्यास नी बुद्धि थाय छे. भूगोल विद्यार्थी पृथ्वी ऊपर रहेल पदार्थो नुं ज्ञान थाय छे तथा लोक नाड़ी थी लोक रचना-नुं ज्ञान थाय छे. विवेचनः- अहियां अजीव एवी वस्तुओ ना दर्शन थी पण मन पर केवी असर थाय छे ते बताववा आस्तिक नास्तिक ने कहे छे के अजीब एवी पण सर्व अवयव थी परिपूर्ण अने सर्वाङ्गे सुन्दर एवी पुतली जोवाथी संपूर्ण अने सौन्दर्य शाली साक्षात् युवती जोतां छतां जेवा प्रकार नो राग उत्पन्न थाय छे तेवा प्रकार नोज राग उत्पन्न थाय छे. अर्थात् स्त्री संबंधी विषय ने याद करावे छे. विषय ने उत्पन्न करनार एवां काम ना आसनो नां चित्रो जोवाथी पण कामी पुरुषो काम क्रीड़ा ना विकार नो अनुभव करे छे. योग ना पासन जोवाथी योग ना अभ्यासीनो ने योग ना अभ्यास