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(२६८ ) गाथार्थ:-पोताना चित्त मां एवं न विचार के अजीव नी सेवा थी शुं फल मले? कारण के जेवा प्रकार ना
आकार में निरीक्षण करे छे तेवा प्रकार ना आकार मां रहेला धर्म नं प्रायः मन चिन्त्वन करनार थाय छे. विवेचन:-हवे नास्तिक ने आस्तिक प्रत्युत्तर प्रापतां कहे छे के प्रतिमा अजीव छे अने अजीव नी सेवा थी शुं फल मले छे आवो विचार तमारे न करवो कारण के प्रतिमा पूजन मां प्रतिमा फल नथी आपती, परन्तु प्रतिमा ना आलेखन थी मन ना अध्यवसायो बदले छ अर्थात् तेना आलंबन थी मन पर असर थाय छे. कोई पण वस्तु ना गुण धर्म नुं चिन्त्वन कर, ए मन नो विषय छे. साची वस्तु ना गुण धर्म - चिन्त्वन पण मन करे छे. प्रायः करीने जीव जेवा प्रकार ना आकार वाली वस्तु नुं निरीक्षण करे छे, तेवा प्रकार ना आकार मां रहेला गुण धर्मो नुं मन चिन्त्वन करे छे. एटले सारा आकार वाली वस्तु ना दर्शन थी मन पण सारी वस्तु ना गुण धर्म - चिन्त्वन करवाथी शुभ अध्यवसाय रूप फल मले छे. माटेज शुभ अध्यवसाय माटे प्रतिमा ना आलंबन नी जरूर छे. मूलम्यथा हि सम्पूर्णशुभानपुत्रिका, दृष्टा सती तादृशमोहहेतुः । कामासनस्थापनतश्चकाम-केलीविकारान्कलयन्तिकामिनः।३