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( २६५ ) विहार सरीखा महात्मानो ने शिवालय मां स्थिति करी आपनार छ, अर्थात् आत्मज्ञान ए परमधर्म छे जेनी साधना थी मोक्ष निश्चित थाय छे. विवेचन:-मोक्ष ना अर्थी आत्माए द्रव्य अने भाव एम बन्ने प्रकार ना धर्म नी आराधना करवी जोइये, बन्ने प्रकार ना धर्म नी आराधना द्वारा जीव मुक्ति नी नजीक पहोंचे छे. पछी पागल वधवा माटे आत्म ज्ञान नी पावश्यकता रहे छे. एज आत्म ज्ञान द्वारा जीव मोक्ष पुरी मां स्थिर वास थाय छे. एज वस्तु बतावतां अहियां कहे छे के द्रव्य अने भाव धर्म ए मुक्ति महेल मां प्रवेश करवा माटे
आत्म ज्ञान मुनियोना पाद विहार तुल्य छे अने अंते मुक्ति रूपी महेल मां स्थिर बनावे छे, माटे आत्मज्ञानए परम धर्म छे अने तेनी साधना थी निश्चये मोक्ष थाय छे. मूलम्सन्त्यत्र यद्बोधनदर्शनाख्य-चारित्रमुख्याः सकलागुणौघाः। सात्मबोधोजयतिप्रकृष्टं,ज्ञानादिशुद्ध यदिहास्त्यनन्तम् ।३६ गाथार्थ :-आत्म बोध मां ज्ञान, दर्शन अने चरित्र विगेरे बधा गुणो नो समह वर्ते छे, ऐवा प्रकार नो आत्म बोध उत्कृष्ट रीतिए जय पामे छे, कारण के आत्म बोध मां ज्ञानादिनी शुद्धि अंत रहित रहेली छे.