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मूलम्ःयावत्त्वनाकारपदार्थचिन्ता-कृतौ मनो न क्षममस्ति तद्वत् । सुसाध्वसाधुप्रतिपत्तियोग्यो, ज्ञानोदयो यावदहो भवेन्नो ।३१ तावत्स्वकीयव्यवहाररक्षा, कार्या कुलीनेन सनिश्चयेन । सनिश्चयः सव्यवहार एवं,निन्द्यो गृहस्थो न परैर्यतोभवेत् ।३२ गाथार्थ:-ज्यां सुधी निराकार पदार्थों में ध्यान करवामां मन समर्थ न थाय तथा सुसाधु अने असाधुप्रो एवो बोध न थाय त्यां सुधी निश्चय नय मां रत एवा गृहस्थोए पोताना व्यवहार नी रक्षा करवी जेथी व्यवहार सहित निश्चय वालो बीजाप्रो ने निन्दा पात्र न बने. .. विवेचन:- व्यवहार धर्म - पालन पण जरूरी छे. व्यवहार ना पालन विना गृहस्थ लोको मां निन्दा पात्र बने छे. माटे ज्यां सुधी मन निश्चय धर्म मां दृढ न बने त्यां सुधी व्यवहार - पालन जरूरी छे. ते बतावतां कहे छ के ज्यारे निराकार पदार्थ नुं ध्यान करवामां मन मजबूत न बने अने सुसाधु अने असाधु एवो भेद समझवानी शक्ति न आवे त्यां सुधी व्यवहार सहित निश्चय वाला गृहस्थे पोताना व्यवहार नी रक्षा करवी जेथी लोको मां निन्दा पात्र न बने. मूलम्: स्थिरं यदा चित्तमनाकृतावपि,तदातु सिद्धस्मरणं विधेयम् । तत्सेधने साधुगृहस्थ मुख्य-रात्मावबोधे परियत्न एष्यः ।३३