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पण सारू कारण के प्र संसार मां गृहस्थो संबंधी बधी प्रवृत्ति द्रव्य थीज सिद्ध थाय छे,
मूलम्:
एषां यतो द्रव्यवतां स्वधर्म, द्रव्येस साद्ध भवतीह चेतः । युक्तं ह्यदो यस्य बलं यदीयं, बलेन तेनैव मतं निजंक्रियात् ॥ २६ गाथार्थ - धनवान गृहस्थो पोतानो धर्म द्रव्य थी साधवा इच्छता होय तो ते योग्य छे. जेनुं जे संबंधी बल होय, तेना वड़े पोतानो धर्म करे.
विवेचनः ज्ञानीश्रोतुं कथन एवं छे के संसार मां जीवो ने बधी शक्तिश्रो सरखी प्राप्त थती नथी. तथा जीवो नी भावना पण सरखी होती नथी. एटले जे शक्ति मली होय तेनो सदुपयोग थाय तो सारू. तेथीज धनवान गृहस्थो ने द्रव्य द्वारा धर्म करवानी इच्छा होय तो तेस्रो द्वव्य द्वारा धर्म करे ते योग्य छे. एटलेज पोताने जे बल मल्युं होय ते नो पोताना धर्म मां उपयोग करे एज ठीक छे. मूलम्
बल
तद्रव्यधमं गृहिरणां प्रकुर्वतां, संसारकार्यान्मनसोऽस्तुसंवृत्तिः । यथा तथैते दधतांमनःस्वकं, सालम्बनेपुण्यविधावपेक्षणम् ॥२६ गाथार्थः द्रव्य द्वारा धर्म करता गृहस्थो जेम पोताना संसार ना कार्योथी निवृत्त थाय ते प्रकारे आलंबन वाला पुण्य कार्यों मां अपेक्षा पूर्वक पोतानुं मन स्थापे.