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मां तेस्रो धर्म नी प्रवृत्ति मां एक दम आगल वधवा कठिन होवाथी पोतानी मान्यता मुजब पुण्य मां तत्पर होवा थी पोतानी रूचि प्रमाणे जे पुण्य करे छे, ते भले करे.
मूलम्:
एते गृहस्था हृदये विदध्यु - रितीव संकल्प्य च द्रव्यधर्मम् । द्रव्येण कर्माणि समाचारय्य, यथा मनस्तुष्टिमिदंनिधत्ते । २६ तथैव धर्माण्य पिकानिचिच्चेद्, द्रव्येणकृत्वा स्दमनः प्रसन्नम् । कुर्मोऽत्र येनैव गृहस्थसत्को, व्यापार एष द्रविणेनसिध्येत् । २७ गाथार्थ - गृहस्थ हृदय मां दृढ़ संकल्प करीने द्रव्य द्वारा धर्म ने करे जेथी द्रव्य द्वारा कर्मों आचरी ने आ मन संतोष पामे तेज प्रमाणे केटलांक धर्म कार्यों द्रव्य वडे श्रमे पोतानुं मन प्रसन्न करिये छिये एम लागे, कारण के गृहस्थ संबंधी या व्यापार द्रव्य थीज सिद्ध थाय छे.
विवेचन : पूर्वे बनावेला या गृहस्थो पोताना मन मां दृढ़ निर्णय करीने द्रव्य द्वारा धर्म ने करे कारण के तेमना मन मां एम लागे छे के जेम द्रव्य द्वारा संसार नां कार्यों करावी ने अमो मन मां संतोष करिये छीये, तेवीज रीतिये द्रव्य द्वारा धर्म नां कार्यो करीने अमारा मन ने अमो प्रसन्न करिये छीये. एटले ए रीते परण द्रव्य थी तेस्रो धर्म करे तो