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धर्म नो पाश्रय लीधेलोज छे. तो हवे तेसो पोतानी आत्मसंपत्ति-प्रात्म कल्याण माटे द्रव्य अने भाव एम बन्ने प्रकार ना धर्म नुं पाराधन करे एज तेमना माटे हितकर छे. मूलम् - प्रायेण सावधरता गहस्थाः, सदैहिकार्थाधिकृतौ प्रसक्ताः। कुटुम्बपोषाहतभूरिसङ्घयो-च्चीनीचवार्ताःपरतन्त्रखिन्नाः ।२४ तेऽमी स्वचेतः प्रतिभातपुण्य-कार्योद्यता प्रात्मरुचिप्रवृत्ताः। यदेव ते स्वीयमनोऽभितुष्टय,कुर्वन्तिपुण्यं किलकुर्वतांतत् ।२५ गाथार्थ -पाप व्यापार मां तत्पर, सांसारिक 'द्रव्य उपार्जन करवामां आसक्त, कुटुम्ब पोषण मां आदर वाला, आजीविका ना कारणे पराधीन पणा थी दुःखित अने पोताने मान्य पुण्य मां तत्पर एवा तेरो प्रायः पोतानी रुचि प्रमाणे प्रवृत्ति करे छे. तेथी तेमना मनना संतोष माटे जे पुण्य करे ते भले करे. विवेचन:- गृहस्थो न जीवन लगभग पाप व्यापार मांज व्यतीत थाय छे. कारण के तेश्रो संसार नुं जीवन चलाववा माटे रात-दिन धन उपार्जन करवामांज मशगूल होय छे. वली कुटुंब, परिवार आदि प्रत्ये आदर भाव वाला होवाथी आजोक्किा चलाववानी प्रवृत्ति ना कारणे पराधीन पणे अनेक प्रकार ना दुःखो ना भोक्ता बने छ, आवी परिस्थिति