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वालां कार्यों पण करे छे ते ठीक नथो. माटे तेमने जीव हिंसादि कार्यो नो निषेध करवो जोइये. तेनो प्रत्युत्तर पागल नी गाथा मां आपे छे.
लम्:सत्यं गृहस्थाःखलुते भवन्ति,प्रायोहितेस्थूलधियोऽतिचिन्ताः । प्रारम्भवन्तश्चपरिग्रहादराः,सूक्ष्मेक्षिकालोकनकुण्ठबुद्धयः ।२१ एते विनालम्बनमत्र तत्त्व-त्रये विमुह्यन्तिततः शुभार्थम् । साकारपूजां धृतसाधुवेष-सेवां च दानादि सृजन्तुनित्यम् ।२२ गाथार्थः-तारी वात सत्य छे परन्तु खरेखर ते गृहस्थो प्रायः स्थूल बुद्धि वाला, अधिक चिन्ता वाला, प्रारंभ युक्त, परिग्रह ना आदर वाला सूक्ष्मदृष्टिए मंद बुद्धि वाला अने प्रालंबन विना तत्त्वत्रयी मां मुंझाता एवा होय छे. ते कारण थी तेमना कल्याण माटे तेत्रो प्रभुनी द्रव्य पूजा, वेष धारण करनार साधुओ नी सेवा अने दान-धर्म भले नित्य करे. विवेचन:- साधुअो नं जीवन, आचार-विचार, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अने अवस्था अलग होय छे अने गृहस्थो नी अवस्था, जीवन, प्राचार, विचार आदि अलग होय छे. एटले साधुप्रो सर्व प्रकार ना हिंसादिनो त्याग करी शके छे. परन्तु गृहस्थो. तेवा प्रकार ना हिंसादि नो त्याग करवाने समर्थ नथी कारण के तेश्रो स्थूल बुद्धि वाला होवा थी