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( २९४) गाथार्थ:-जे काले अनाकृति पदार्थ मां मन स्थिर थाय त्यारे सिद्ध नुं स्मरण करवं जोइये. सिद्ध ना स्मरण नी साधना माटे साधु अने गृहस्थो विगेरेए आत्म ज्ञान माटे प्रयत्न करवो जोइये. विवेचन:-प्रथम साकार पदार्थ नं ध्यान करी मन ने स्थिर करवा प्रयत्न करवो जोइये. पछी अनाकार पदार्थ ना ध्यान मां मन ने जोडवं अने अनाकार पदार्थ ना ध्यान मां मन स्थिर थाय त्यार बाद सिद्ध भगवंतो नुं स्मरण करवं जोइये. साधु अने गृहस्थोए सिद्ध भगवंतो नुं स्मरण नी साधना माटे प्रात्म ज्ञान नी प्राप्ति थाय तेवो प्रयत्न करवो जोइये.
मूलम्पौर्वो विधिर्योऽखिलद्रव्यभाव-भिन्नां स हि द्वारधरोपलब्ध्य । निर्वाणधाम्नोवरयानवत्स्या-त्तस्यप्रवेशेऽयमिहाऽऽत्मबोधः।३४ तदङ्गने पादविहारवद्यः, शिवालयावस्थितिकृन्महात्मनां । तेनात्मबोधःपरमोऽस्तिधर्मो,यत्सेधनान्नितिरेवनिश्चिता।३५ गाथार्थः- पूर्व कहेल द्रव्य अने भाव रूप धर्म मुक्ति रूपी महेल ना द्वार नुं प्रांगणुं प्राप्त करवा माटे श्रेष्ठ वाहन तुल्य छे. अने मुक्ति रूपी महेल ना प्रांगणा मां पहोंच्या . बाद तेमां प्रवेश करवा माटे आत्म ज्ञान प्रांगणा मां पाद ,