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( २८८ ) धर्म नी समझ अल्प होय छे. आर्थिक, शारीरिक, कौटुम्बिक आदि अनेक प्रकार नी गृहस्थ जीवन नी चिन्ता थी भरेला होय छे. तेमज गृहस्थ जीवन ना निभाव माटे अनेक प्रकार ना प्रारंभ-समारंभ वाला होय छे. वली धन, धान्य, परिवार आदि अनेक प्रकार ना परिग्रह मां आदर वाला होय छे.
सूक्ष्म बुद्धि नी दृष्टिए विचारतां अल्प बुद्धि वाला पण होय छे. तेमज मंद बुद्धि ना कारणे कोई पण प्रकार ना
आलंबन वगर सुदेव, सुगुरु अने सुधर्म रूप तत्त्वत्रयो मां मुंझायला होय छे छतां तेमना अात्म कल्याण माटे जिनेश्वर देव नी द्रव्य पूजा, साधुअोनी सेवा-भक्ति अने सुपात्रादि स्थाने दान-धर्म हमेशां भले करे. मूलम्उच्चैः कुलाचारयशोऽवनार्थम्,श्रितोगृहस्थैः सकलोऽपिधर्मः । तद्रव्यतोभावतमात्मसम्पदे,द्विधापिधर्मगृहिणःश्रयन्त्वमी।२३ गाथार्थः-ऊच कुल ना प्राचार अने यश ना रक्षण माटे सर्व प्रकार नो धर्म नो आश्रय गृहस्थो वड़े लेवायेलो छे. या गृहस्थो द्रव्य अने भाव एम बन्ने प्रकारे आत्म संपत्ति माटे धर्म नो आश्रय ले. विवेचन:- जोके गृहस्थोए पोताना ऊंच कुल ना रक्षण माटे अने पोतानी कीत्ति ना रक्षण माटे सर्व प्रकार ना