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गाथा - प्रमाणे जेकेटलाक लोको पोताना मते ईश्वर ने मानता परब्रह्म मेलववा नी इच्छा वाला ने विद्वान् एवा परमेश्वर नी प्रीति माटे ते गुणो नो आश्रय ले छे. विवेचनः ग्रन्य दर्शन वाला प्रो परण टश गुणो नो आश्रय
छेते बतावतां कहे छे ते के ए प्रमारणे नैयायिको, वैबेषिको, सांख्यो, मीमांसको विगेरे केटलाक लोको ईश्वर नी सेवा थी मुक्ति थाय छे एवा सद्भाव थी ईश्वर नी मान्यता वाला विद्वान् अने परब्रह्म एटले मोक्षनी इच्छा वाला ईश्वर नी प्रीति माटे क्षमा आदि गुणो नो आश्रय ले छे.
गृहस्थो थो द्रव्य धर्म नु सेवन अने व्यवहार थी पालन मूलम्:
साधो ! गृहस्था अपि देशतोऽमी, श्रयन्तवमूनेव गुरणांश्विराय । परन्तु यत्कर्मरिण जीवहिंसा, श्रयन्ति चेत्तन्न परं तदेषाम् । २० गाथार्थ - हे मुनि ! आ गृहस्थो पण देश थी दीर्घकाल पर्यंत या गुणो तो श्राश्रय ले छे. परन्तु जे कार्य मां जोव हिंसा थाय ते कर्म नो जो ते गृहस्थो श्राश्रय ले तो ते श्रेष्ठ नथी अर्थात् सारू नथी.
विवेचन:- हे मुनि ! या गृहस्थो क्षांत्यादि देश गुणो नो आश्रय ले छे ते वात तो ठोक छे एम नास्तिक कहे छे, परन्तु नास्तिक बीजो एक प्रश्न करे छे के तेस्रो जीव हिसादि