________________
( २६७ ) नो भ्रम, गुल्म एटले गोलो चढवो, गलाशय नो रोग, करमिया, ताव नी अधिकताथी गरमी, वाला नाम नो रोग, कपाल नामनो रोग, गला नो रोग, विद्रधि इत्यादि शरीर मां रहेल बधा रोगो सामान्य माणसो पोतानी मेले जाणी शकता नथी, परन्तु बीजाना कथन थी जाणे छे. वली पोताना शरीर मां रोगो रहेला छे एवं अने औषधि आदि थी रोगो शान्त थया छे एवं सामान्य माणसो जारणी शके छे. मूलम् । इदं विदां सुन्दर! स त्वमैदं-पय्यं विजानीहि मयोच्यमानम् । वस्त्वस्ति यत्प्रारणभृदङ्गभाग-भूतं प्रदृश्यं न परन्त्वमूतम् ।३१ गाथार्थ:-हे विद्वान् ! में पूर्वे कहेल अने वर्तमान मां कहेवाता तत्त्व ने तुं जाण, के जे वस्तु प्राणियोना शरीर ना अवयव भूत छे ते देखावा योग्य छे; परन्तु अरूपी वस्तु देखी शकाती नथी. विवेचन:-नास्तिक प्रत्ये आस्तिक कहे छे के तुं खरेखर विद्वान छे तो में पूर्वे जे वस्तुप्रो कही छे अने वर्तमान काल मां माराथी जे कहेवाय छे. ते बधी वस्तुप्रो नुं तात्पर्य अथवा रहस्यनो विचार. कारण के प्राणियोना शरीर ना अवयवो देखी शकाय छे, कारण के ते रूपी अने स्यूल होवा थी देखी शकाय छे. परन्तु जे वर्ण, गंध, रस अने