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करनार होय छे, पांचे इन्द्रियोना विकार विनाना होय छे, प्रसन्नता गुण युक्त होय छे, आत्म गुण करनार एवी श्रेष्ठ कथानो कहेनार होय छे, चंचलता वगर ना होय छे, दरेक प्रकार ना पदार्थो ना समह ने यथार्थ रीते प्रकाश करनारा होय छे, स्वामी सेवक भाव वगर ना होय छे, अत्यन्त सत्त्व ने धारण करनारा होय छे, भय थी रहित होय छे, अल्प आहार करनारा होय छे, विशिष्ट गुण ने धारण करनारा होय छे, संसार प्रत्ये दुर्गछा भाव धारण करनारा होय छे, एवा प्रकार ना अनेक गुणो ना धारण करनारा होय छे. अने ते मुमुक्षु आत्मानो ज्यारे मोक्ष मां जाय छे त्यारे तेमने अनंत गुणो नी प्राप्ति थाय छे. ते अनंत गुणो तेमना मां सिद्ध क्षेत्र ना प्रभाव थी उत्पन्न थाय छे अने तेनी प्रतीति अनंत ज्ञानी केवली भगवंतो ना वचनथीज थाय छे. मूलम्:तत्सेवकेनाऽपि तदीयशील-विधायिनाभाव्यमिति प्रतीतम् । तथा च सिद्धा यदमूर्तरूपा, गताशना नोरुषवीतरागाः ।७ निरञ्जनानिष्क्रिय कागतस्पृहाः, अस्पर्धकाबन्धनसन्धिर्वाजताः सत्केवलज्ञाननिधानबन्धुरा,निरन्तरानन्दसुधारसाञ्चिताः। प्रतस्तदुत्पन्नगुणानुगामिभि--महानुभाव निििवधीयते । तेषांगुरणानामनुयानमात्मा-नुरूपशक्त्या तदवाप्तिकांक्षया ।