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विवेचन हवे नास्तिक आस्तिक प्रत्ये कहे छे के हे मुनि! तारी वात ठीक छे परन्तु एक शंका थाय छे के चिन्ह भले न देखाय पण चिन्ह आदि नुं फल तो माणस ने प्रत्यक्ष मले छे, माटे चिन्ह नी वात मान्य थाय छे. स्वर्ग-नरकादि नुं फल मलतुं , नथी अने चेष्टा वड़े पण स्वर्ग-नरक क्यारे जाणी शकातां नथी माटे केवी रीते मान्य थाय. नूलम्:मैवं वद कोविद ! शक्तिशम्भु-गणेशवीरादिकदेवसंहतिः । शंव ङ्गिमान्याऽथतुरुष्कपूज्याः,फिरस्तपेगम्बरपीरमुख्याः १७ तदीयसेवोत्थिततादृशेन, फलेन वेद्या न हि सन्ति ते किम? सन्तोतिचेत्ते त्रिदशानमाः,प्रायोनदृश्याःकलिकालयोगतः। दूरस्थतद्योग्यनिवासभूमे---रगम्यतत्क्षेत्रपथा मनुष्याः । परन्तु सिद्धास्त्विदमीयसत्ता, नो मादृशैरा गतैः प्रदा । गाथार्थ-हे विद्वान् ! एम न बोल. शक्ति, शंभु, गणेश, वीर विगेरे देवो नो समूह शैव धर्मीप्रोने मान्य छे. फिरस्त, पेगम्बर अने पीर विगेरे यवनो ने मान्य छे. तेमनी सेवाथी तेमने फल मले छे तेथी जाणवा योग्य छे. तेथी शुं तेरो नथी ? जो छे तो तेरो देव छे, मनुष्य नथी. कलिकाल ना योगे तेश्रो देखाता नथी. तेमनुं निवास स्थान दूर होवाथी