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गाथार्थः-तुं पोताना मन मां विचार कर. जो लंका छे के नहीं ? जो छे तो तारा-मारा सर्व जनो वड़े पण पा संभलाय छे तो लंका कोण न माने? विवेचन:-नास्तिक ने आस्तिक फरीने कहे छे के तं पोताना मन मां बराबर विचार के लंका छ के नहीं ? जो तुं कहीश के बंका छे, तो ताराथी, माराथी अने सर्व जनो बड़े आ लंका छ एम संभलाय छे. जो ए प्रमाणे लंका संभलाय छे तो लंका ने कोण न माने ? अर्थात् जो बीजा बड़े संभलाती वस्तुओ मनाय छे तो सर्वज्ञ भगवंतो बड़े कयन कराती आत्मादि वस्तुओ केम न मनाय ? अर्थात् मनायज. मूलन्त्वमित्थमेवाऽऽत्मनिमानयात्र,स्थितैस्तुलङ्कानयथानिरीक्ष्यते। लस्वर्गमोक्षादिपदं तथैव,छद्मस्थपुम्भिः परिवीक्ष्यमत्रगैः ।१२ गाथार्थः-आ रीते तं आत्मा मां विचार कर के जे प्रकारे पा स्थले रहेलामो वड़े लंका न देखाय तेम छद्मस्थ प्रात्मानो बड़े स्वर्ग मोक्षादि न देखाय. विवेचन:-आस्तिक नास्तिक प्रत्ये कहे छे के तुं तारा मात्मा मां शान्त चित्ते, सारी रीते विचार कर के जेम