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इन्द्रियो ग्रहण करी शके छे. परन्तु तेनाथी जूदी वस्तुप्रोनी बाबत मां तो यथार्थ वादी ने प्राप्त एवा केवली भगवंती ना वचन ने प्रमाण भूत मानवुं पड़े, कारण के जगत मां रहेला रूपी ने प्ररूपी, सूक्ष्म ने बादर बधा पदार्थो मारणसो नी इन्द्रियो थो जारणी शकाता नथी.
॥ अथ पञ्चदशोऽधिकारः ॥ अदृष्ट स्वर्ग आदि नुं प्रमाण परशु
मूलम्
पुनश्च यद्द हबहिःस्थवस्तु, दृश्यं तदेवाङ्गिभिरीक्ष्यतेऽक्षैः । ग्राह्यं तु यन्नास्ति नगृह्यते तत् परोक्तिशक्त्यातदपीहमन्यते । १ गाथार्थ :- वली शरीर नी बहार रहेली जे दृश्य वस्तु छे तेज प्रारिणोथी इन्द्रियो वड़े जोवाय छे, अने जे इन्द्रियो वड़े ग्राह्य नथी ते वस्तुओ इन्द्रियो थी ग्रहण कराती नथी, परन्तु बीजाना कथन थी मनाय छे.
विवेचनः -- नास्तिक मत ना परिहार माटें अने सैद्धान्तिक मत नी पुष्टि माटेज बाकी रहेल वस्तु बताववामां आवे छे के जे वस्तु शरीर नी बहार रहेली होय ने देखी शकाय तेवीज होय, तेनेज प्राणिप्रो इन्द्रियो वड़े जाणे छे