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मूलम्:
ततः सचेतः प्रणिचेत चेतसा, जीवेभ्यएते सबला अजीवाः । यतोयथाऽजीवबलप्ररणोदिता, जीवास्तथास्युसुः खदुःखभाजः । ११
नाथार्थः— तेथी सावधान थई मन थी जाणे के जीवो । करतां जीवो बलवान छे, कारण के अजीव ना बल थी प्रेरणा पामेल जीवो जे प्रकारे थाय ते प्रकारे सुख-दुःख वाला थाय छे.
विवेचन - जीवो छः द्रव्य अने पांच समवाय कारण ने प्राधीन बनेला होवाथी अजीव द्रव्यो जीवो करतां बलवान छे. ए छः द्रव्यो मां पण कर्म रूप पुद्गल द्रव्य मुख्य पर बलवान छे. कर्म पुद्गल द्रव्यो ने बीजां पुद्गलो, पांच द्रव्यो तथा पांच समवाय नी सहाय थी जीवो करतां अजीव बलवान थवाथी जीवो निर्बल बनेला छे. ए कारणे अजीवोनी जेवा प्रकार नी प्रेरणा होय तेवा प्रकार ना जीवो सुखी अथवा दुःखी थाय छे.
द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भाव नी अनिवार्य शक्ति नी प्रेरणा थी जड़ स्वरूप एवा कर्म नु प्रगट पर
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मूलम् : :स्वभावएषोऽस्तियतस्तुजीवाः, गृह्णान्तिकर्माणि शुभाशुभानि स्वकालसीमानमवाप्य कर्माण्यमूनि चंषांसुखदुःखदानि ॥ १२ ॥