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( २१६ ) कर्माण्यपीत्थं पुनरेष प्रात्मा,गृह्णन् न जानाति शुभाशुभानि । यदातुतेषांपरिपाककाल-स्तदासुखोदुःखयुतोऽथवास्वयम् ॥२६ गाथार्थ :-अथवा कोई रोगी औषध खातो छतो श्रा हितकारी अने आ अहितकारी छे, एम जाणतो नथी. छतां तेना विपाक समये सुख अने दुःख ने मेलवे छे-तेवीज कमों ने ग्रहण करतो छतो शुभाशुभ ने जाणतो नथो, छतां विपाक समये सुखी तथा दुःखी थाय छे. विवेचन:-कमों नुं फल सारु मलशे के खराब, ते आ जीव जाणतो न होवा छतां पण कमौं पोतानुं फल प्राप्या वगर रहेता नथी. ते माटे दृष्टांत द्वारा बतावाय छे. जेम के कोई रोगी औषध खातो छतो ते हितकारी छे के अहितकारी छे, एम जाणतो न होवा छतां पण तेना फलना अवसरे ते सुख अने दुःख ने प्रान्त करे छे. तेम आ जीव कमौं ने ग्रहण करवाना समये कमौंना शुभ अने पशुभ फल ने जाणतो नथी. तो पण कोई नो प्रेरणा विना कमौं तेना विपाक समये जीव ने सुखी अने दुःखी बनाव्या वगर रहेतां नथी. मूलम्:विषं तथा कृत्रिममीदृशंस्या-त्तत्कालनाशाय तथकमासात् । द्विमासषण्मासकवर्षकाल-द्विवर्षवर्षयतोऽपिनाशकृत् ॥२७॥