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कहेवातुं होय ते सत्पद छे,एम चतुर पुरुषो कहे छे. जे सत्पद वड़े कहेवा योग्य होय छे ते वस्तु होयज छे. त्यारे नास्तिक कहे छे के सत्पद शुं छे ? आस्तिक कहे छे के जे शब्द नो समूह मे पूर्वे कहेल छे ते सत्पद वाच्य छे छतां फरी थी कहेवाय छे.
विवेचन:-नास्तिक कहे छे के जो बधा पदार्थो नी सिद्धि प्रत्यक्ष प्रमाण थी नथी थती तो सत्य शुं छे ? तेनो शुद्ध उत्तर प्रापो, हवे आस्तिक कहे छे के कोई पण वस्तु ना समस्त स्वरुप नुं ज्ञान जेना थी थाय ते सम्यग् ज्ञान कहेवाय छे, अने तेनेज प्रमाण कहेवामां आवे छे. ते प्रमाण जैन आगमो मां बे प्रकारे बतावेल छे-प्रत्यक्ष प्रमाण अने परोक्ष प्रमाण. मन अने इन्द्रियो नी सहाय विना आत्मा द्वारा जे प्रत्यक्ष ज्ञान थाय छे ते प्रत्यक्ष प्रमाण जाणवं. जेम के अवधिज्ञान, मनः पर्यव ज्ञान अने केवल ज्ञान ए त्रणे मन अने इन्द्रियोनी सहाय विना आत्मा आत्माने प्रत्यक्ष थाय छे तेथी ए त्रणे प्रत्यक्ष ज्ञान गणाय छे. मन अने इन्द्रियो द्वारा आत्मा ने जे ज्ञान थाय ते परोक्ष ज्ञान गणाय छे, जेमके मति ज्ञान अने श्रुत ज्ञान ए बे ज्ञान मन अने इन्द्रियो नी सहाय द्वाराज आत्मा ने थाय छे तेथी ए बे परोक्ष ज्ञान गणाय छे. परन्तु नैयायिको विगेरे चार प्रमाण माने छे.