________________
( २५८)
गाथार्थ-ते प्रमाणे अहिफेनादि (अफीण प्रादि)पदार्थों मां प्रायः सर्व इन्द्रियो मुंझाय छे. तेमां अहिफेनादि थी उत्पन्न थयेल उन्मत्तताज इन्द्रियो ना मुंझावा मां कारण भूत बने छे. ते कारण थी श्रोत्रेन्द्रियादि नुं ज्ञान सत्य होतुं नथी. विवेचन:-कोई माणसे अफीण आदि पदार्थों नुं भक्षण कयु. त्यार बाद तेनी इन्द्रियो मुंझावा माड़े छे, एटले ते इन्द्रियो थी स्पष्ट ज्ञान थतुं नथी. अफीण भक्षण कर्या पहेला पण इन्द्रियो तेनी तेज हती अने अफोण भक्षण कर्या बाद पण इन्द्रियो तेज छे. इन्द्रियो मुंझाय छे तेमां अफीण
आदि पदार्थो नी उन्मत्तताज कारण भूत छे, माटे इन्द्रियो मुंज्ञान सत्य होतुं नथी. मूलम्:तथौषधीमन्त्रगुडाविशेष--ौकाजनैर्गुप्तनोनरस्य । मूर्तिस्तुमोदृक्पथमेतिनुरणां,तत्किसनास्तीति न गृह्यतेखैः ।१७ तदाश्रितार्थादिकृतेस्तुतस्य, सता तथा शक्तिमहेशवीराः। भूतं सती जाङ गुलिका सपत्नी,सिद्धायिकादेरपि तद्वदेव ।१८ गाथार्थः-तेवीज रीते औषधि, मंत्र गुटिका तथा अदृश्य थई शके तेवं अंजन विगेरे थी अदृश्य थयेल शरीर माणसोना जोवा मां आवतुं नथी, तो शुं ते मनुष्य नथी ? जो मनुष्य होय तो इन्द्रियो थी केम देखातुं नथी ? अदृश्य