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( २५६ ) विवेचन:-साकर, कर्पू रादि सुगंध वाली वस्तुप्रो कान, अांख, नाक अने जीभ ए चारे इन्द्रियो द्वारा जारणी शकाय छे एटले ए पदार्थो नुं ज्ञान चारे इन्द्रियो द्वारा थाय छे. परन्तु तेमां केटलाक पदार्थों नुं ज्ञान बीजी इन्द्रियो थी स्पष्ट थतुं नथी, परन्तु जीभ द्वाराज तेनुं ज्ञान स्पष्ट थाय छे. अने ते प्रमाण भूत मनाय छे.
स्वर्णादिके दस्तुनि कर्णनेत्र-ज्ञानं स्फुरत्येव तथापि तत्र । निर्घर्षणादिप्रभावोऽवबोध--स्तदर्थसत्याय न केवलाक्षम् ॥१३ गाथार्थ--सोनादि वस्तु मां कान अने आंख ज्ञान स्फुरायमान थाय छे तो पण तेमां निर्घर्षणादि थी उत्पन्न थयेल ज्ञान तेना निश्चय माटे थाय छे परन्तु केवल इन्द्रियो थी उत्पन्न थयेल ज्ञान निश्चय माटे थतुं नथी. विवेचन:-सोनुं विगेरे वस्तुप्रोमां जोके कान अने अांख संबंधी ज्ञान उपयोगी बने छे, तो पण तेनो साचो निर्णय करवा माटे सोना ने घस, कापवं, तपाववं अने कूटवू पड़े छे. परन्तु केवल नेत्र थी उत्पन्न थयेल ज्ञान वड़े सोनादि नो सचोट निर्णय थई शकतो नथी. मूलम्मारिणक्यमुख्येषु पदार्थराशिषु, समाक्षविद्रत्नपरीक्षिकातः । तथापितेषामधिकोनवक्रयो,निगद्यतेरत्नपरीक्षकःकिम्? ॥१४