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यदोदृशा अप्ययि सिद्धशब्दाः,येषां नसाक्षात्कृतिरिन्द्रियःस्वैः। तत्पुण्यपापादिकवस्तुनीहा-प्रत्यक्षके कस्य च खस्यवृतिः ।२५ गाथार्थ:-श्रा संसार मां पूर्व करेल प्रकार वाला सिद्ध थयेल शब्दो छ तेरोनो साक्षात्कार नास्तिको ने पण पोतानो श्रोत्रेन्द्रियोथी नथी थतो तो अप्रत्यक्ष एवा पुण्य पाप आदि पदार्थो मां कोनी इन्द्रियो नं प्रवर्तन थाय ? अर्थात् न थाय. विवेचनः-प्रथम बतावेल शब्दो ज्यारे नास्तिको ने पण पोतानी श्रोत्रोन्द्रियोथी प्रत्यक्ष थता नथी, तो पछी पुण्य, पाप, स्वर्ग, नरक, आत्मा, मोक्ष आदि आ अप्रत्यक्ष पदार्थों मां केवी रीते इन्द्रियो प्रवृति करे ? अर्थात् ज्यां प्रत्यक्ष पदार्थो पण बधी इन्द्रियो थी जाणी शकाता नथी तो अप्रत्यक्ष पदार्थो नी तो वातज क्यां करवी ? माटे प्रत्यक्ष देखाय तेज साचं एवा नास्तिको नो मत खोटो ठरे छे.
॥ अथ चतुर्दशोऽधिकारः ॥
परोक्ष प्रमाण पण मानवा.. योग्य छ मूलम्:अतो य एतन्मनुते वदावदः, प्रत्यक्षमेकं हि.मम प्रमारणम् । तच्चिन्त्यमानंन विवेकचक्षुषाम,शक्तंभवेत्सर्वपदार्थसिद्धय ।१