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गाथार्थ -नास्तिको माने छे के एक प्रत्यक्षज प्रमाण छे. तो विवेकी आत्मानो ने विचारणीय छे के ते सर्व पदार्थो नी सिद्धि माटे शक्तिमान थतुं नथी.
विवेचन:-आटलुं समझाववा छतां हजु पण नास्तिकवादी न कहेवं एवं छे के मारे तो प्रत्यक्ष प्रमाण एज मान्य छे. त्यारे आस्तिक वादी समझावे छे के दरेक पदार्थ नुं ज्ञान करवामां आपणी चर्म चक्षुत्रो काम लागती नथी, अथवा पांच इन्द्रियो द्वारा बधा पदार्थो नुं ज्ञान थई शकतुं नथी. माटे विवेक चक्षु वालाअोए तो प्रत्यक्षज मान्य छे. ए बाबत जरूर विचारवी जोइये, कारण के बधा पदार्थो नी सिद्धि करवामां प्रत्यक्ष प्रमाण काम लागतुं नथी, अर्थात् बधा पदार्थो नी सिद्धि करवामां प्रत्यक्ष प्रमाण समर्थ नथी.
मूलम्:
किहि सत्यनिजगादनास्तिक-स्तदुत्तरंयच्छतुशुद्धमास्तिकः। यदेकशब्देन निमद्यमानं, तत्सत्पदं प्राहुरिति प्रवीणाः। तद्विद्यते यन्ननुसत्पदेन, वाच्यं भवेद् वस्तु तदत्र किं स्यात्?। यच्छब्दजातं गदितं पुरैव, तथा पुनः किंचिदनुच्यतेऽत्र ।३ गाथार्थ-त्यारे नास्तिके कह्य के सत्य शं छे तेनो शुद्ध उत्तर प्रापो. एटले आस्तिके कह्य के जे एक शब्द 'वड़े