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( २२२ ) विवेचन:-ग्रहो केवी रीते फल प्रापे छे ते बतावतां कहे छे के सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनी, राहु, केतु, नेप चुन, हर्षल अने प्लुटो विगेरे ग्रहो ते व्यक्ति नी जन्म कुंडली मां पण तेज प्रमाणे आवे छे के ते जीवे पूर्व जन्म मां जेवा प्रकार नां कर्मो करेलां होय छे, अने सूर्यादि नी दशा अने अन्तर्दशा मां तेनुं फल भोगवे छे, तेम को अने अन्तकर्मो पण कोई नी प्रेरणा विना पण तेनुं फल जीव परिपाक काले भोगवे छे.
कर्मेदमाहुःकतिधाबुधाःसुधा-किरागिरात्वंशृणुदक्षिण! क्षरणम् भङ्गीचतुष्केनचतुविधं त-तत्राऽऽद्यमत्राऽऽचरितंत्विहोदयेत्।४०
कम ना उदये कम आववाना प्रकारो:शस्तंतथाऽशस्तमहोयथाभुवि, सिद्धायवासाधुजनायभूभृते । श्रियाइहस्वल्पमपिप्रदत्तं,चौर्याचशस्तंपुनरत्रनाशकृत् ।।१। गाथार्थ :-विद्वानो अमृत झरती वाणी वड़े 'पा कर्म केटला प्रकार नुं छे' ते कहे छे के हे चतुर पुरुष ! तू एक क्षण सांभल. चतुभंगी वड़े चार प्रकार नुं छे. तेमां प्रथम आ भवे आचरेल आ भव मां उदय मां आवे छे. ते पण बे प्रकार नुं छे-शुभ अने अशुभ. जेम संसार मां सिद्ध पुरुष अथवा साधु पुरुष अथवा राजा ने आपेल लक्ष्मी माटे थाय छे ते शुभ अने चोरी करवाथी आवेल ते नाश माटे. थाय छे ते अशुभ.