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( २२३ ) विवेचना-कर्मो केटला प्रकार ना छे एम जिज्ञासा थवा थी पूछे छे के विद्वानो ए केटला प्रकार नुं का छे ? तेनो प्रत्युत्तर प्रापतां जणावे छे के हे चतुर पुरुष ! तुं क्षण मात्र संभल; ते कर्म चतुर्भंगी वड़े चार प्रकार नुं बताव्यु छे (?) आ भव मां करेल कर्म नुं फल आ भव मांज मले छे, जेम के कोई सिद्ध पुरुष ने दान प्रापवाथी पा लोक मां लक्ष्मी आदि मले छे अथवा कोई साधु पुरुष ने दान आपवाथी मूलदेव नी जेम पाभव मां पण राज्य आदि मले छ, अथवा कोई राजा ने भेटणुं विगेरे पापवाथी राजा नी प्रसन्नता प्राप्त थतां या भव मां पण अनेक प्रकार ना लाभो मले छे, ते आ लोक मां शुभ आचरेल तेनुं प्राभव मांज शुभ फल मले छे. अने या भव मां अशुभ आचरेल ते आ भव मां अशुभ आचरेल ते या भव मां अशुभ फल मले छे. जेम के आ भव मां चोरी, जारी विगेरे करवाथी राजा तरफ थी तेने फांसी आदि थाय छे. माटे या भव मां अशुभ आचरेल तेनुं आ भव मां अशुभ फल मले छे. या प्रथम भंग शुभाशुभ नो जाणवो.
मूलम:भेदो द्वितीयोऽत्रकृतं परत्र, कर्मोदयेत्र यथा प्रशस्यम् । तपोव्रताद्याचरितं सुरत्वा--विरं तदन्यन्नरकादिदायि ।४२॥