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. ( २३२ ) गाथार्थः-व्रतधारी अथवा अवतो एवा संसारी जीवो ने पृथ्वी ऊपर पड़ेला वरसाद ना बिन्दुप्रो ना समूह नी जेम भुक्त, भोग्य अने परिभुज्यमान एम त्रणे प्रकार नुं कर्म चिरस्थायी होय छे, परन्तु केवली भगवंतो ने शिला ऊपर पड़ेल वृष्टि नी जेम अल्प स्थिति वालुं होय छे, तो पण केवली संबंधी कम सत्ता मांत्रण दशा विचारवा.
विवेचन:-संयमी अने असंयमी एवा सर्व संसारी जीवो ने पृथ्वी ऊपर पड़ेला, पड़शे अने पड़ता एवा वरसाद ना बिन्दुओ ना समूह नी जेम भुक्त, भोग्य अने परिभुज्यमान एम त्रण प्रकार - कर्म छे. परन्तु ते लांबा काल थी स्थिर रहे एवं होय छे, वली केवली भगवंतो ने शिला ऊपर पड़ेल वृष्टि नी जेम अल्प काल वालुं भुक्त, भोग्य अने परिभुज्य मान कर्म होय छे.
केवली भगवंतो ने केवल ज्ञान पाम्या पछी पोताना आयुष्य ना छेल्ला बे समय सुधी प्रति समय भुक्त, भोग्य अने भुज्यमान एम त्रणे प्रकार नें कर्म होय छे. आयुष्य ना अंत समय ना पहेला समये भुक्त अने भुज्यमान एम बे प्रकार - कर्म होय छे अने आयुष्य ना अंत समये भुक्त फकत एकज प्रकार नुं कर्म होय छे, कारण के सर्व कर्म नो अंत समये क्षय थाय छे....
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