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गाथार्थ:-पहेला मन अविकारी हतुं. हमणां ते विकारी थy. ा कोनो भेद छ ? ते मन नो भेद छे. मन देखातुं नथी अने रंग थी पण जणातुं नथी. तो केवी रीते जणावाय ते कहो. तमारा मते तो जे देखाय नही, ते होतुं नथी. तो इन्द्रियो नो अहीं विकार केम? विवेचन:--प्राचीन ज्ञान सत्य छे अने अर्वाचीन ज्ञान असत्य छे. तो इन्द्रियो तो ए नी एज छे तो तेमां विशेष शुं ? तेना जवाब मां नास्तिक कहे छे के पहेलां मन विकार वगर नुं हतुं, परन्तु पाछल थी विकार वालुं थवाथी भ्रम उत्पन्न थाय छे. हवे आस्तिक पूछे छे के मन विकार रहित अने विकार वालं आ भेद कोनो छ? एम पूछवाथी नास्तिक जवाब आपे छ के आ भेद मन नो छे. त्यारे आस्तिक नास्तिक ने पूछे के मन तो देखातुं नथी अने रंग थी पण जणातुं नथी. तो केवी रीते जणावा योग्य छ ? ते कहो. कारण के तमारा मत मुजब जे न देखाय ते होतुं नथी. तो ते उदाहरणो मां इन्द्रियो नो विकार केवी रीते होय छे. नूलम्ःअयं विकारस्तु बभूव साक्षाद, यं सर्व एते निगदन्ति तज्ज्ञाः। त्वंपश्यचेदृष्टपदार्थकेष्वपि,मोहोभवेदित्पमिहैव खानां ।११ तोन्द्रिज्ञानमिदं हि केन, सत्यं सता सर्वमितीव वाच्यम् । तदेवसत्यंयविहोपकारिण,उपादिशदिव्यदृशोगतस्पहाः ।१२