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( २४३ ) गाथार्थ:-आ विकार साक्षात् हतो, जेने आ सर्व तत्वज्ञो कहे छे. तुं विचार, जो पा जन्म मांज दृष्ट पदार्थो मां पण इन्द्रियो नो मोह होय तो इन्द्रियो नुं ज्ञान सत्य केम कहे? सत्य ज्ञान तो तेज छे के जे उपकारी, गत स्पृहा वाला अने दिव्य दृष्टि वालाग्रोए कहेलुं छे.
विवेचनः-सत्य वस्तु मां जे भ्रम थयो ते विकार हतो एम बधा तत्वज्ञ कहे छे. तो तुंज विचार करके प्रा जन्म मां पण देखी शकाय एवा पदार्थो मां पण इन्द्रियो नो मोह एटले भ्रान्ति थाय छे. तो परलोक ना पदार्थो मां इन्द्रियो नो मोह थाय तेमां नवाई शी? माटे मोहवालं एवं इन्द्रियो नं ज्ञान सत्य केम होई शके ? खरेखर सत्य ज्ञान तो परम उपकारी, निस्पृह अने दिव्य दृष्टि वाला केवल ज्ञानीप्रोज बतावे छे तेज होई शके छे.
स्वस्थ मनस्त्वं बुध ! सन्निधाय,विचारमेतंकुरु तत्त्वदृष्टया । शब्दाइमेज्ञानवतोपदिष्टा-स्तेऽमीयथार्थाभवताऽपिवाच्याः।१३ गाथार्थ- हे चतुर, तुं मन स्थिर करी ने दिव्य दृष्टि ए विचार कर. पा शब्दो ज्ञानीग्रोए बतावेल छे ते तमारे परण यथार्थ करवा जोइये.