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. ( २३६ ) विवेचनः-या जगत मां जैन, वेदांतिक, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा, बौद्ध अने जैमिनी विगेरे छः दर्शनो प्रसिद्ध छे. या बधा दर्शनो, पुण्य, पाप, नरक, स्वर्ग, पुनर्जन्म अने मोक्ष विगेरे माने छे. फक्त चार्वाक नामनो नास्तिक वादी आत्मा पुण्य, पाप विगेरे ने नथी मानतो. तो तेश्रोनो शं मत छे ? ते जणावो. मूलम:ते नास्तिका दृश्यपदार्थसक्ता, नोइन्द्रियादेयविचारमुक्ताः । प्रत्यक्षमेकं वृणुते प्रमारणं, पञ्चेन्द्रियाणांविषयोऽस्ति यत्र ।२ गाथार्थ-ते नास्तिको देखाता पदार्थ ने माननार अने मन थी जाणी शकाय एवा विचार थी रहित छे. जेमां पांचे इन्द्रियो विषय छे एवा एक प्रत्यक्ष ने प्रमाण भूत माने छे. विवेचन:-स्पर्शेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय अने श्रोत्रेन्द्रिय ए पांचे इन्द्रियो ना आठ प्रकार ना स्पर्श, पांच प्रकार ना रस, बे प्रकार ना गंध, पांच प्रकार ना वर्ण अने त्रण प्रकार ना शब्द एम पांचे इन्द्रियो ना त्रेवीश विषयो के जे प्रत्यक्ष थो देखो शकाय अने जारणी शकाय तेज वस्तु ने माननारा छे अने मनथी जे पदार्थो विचारी शकाय एवा अने बीजा जे अवधि ज्ञान, मनपर्यवज्ञान अने केवल ज्ञान थी जाणी शकाय के देखी शकाय तेने नास्तिको मानता