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हानि थी रात्रे बधी इन्द्रियो मुंझाय छे. तेथी रामादि थी भिन्न पदार्थो मां रामादि नो भ्रम थाय छे. त्यारे प्रास्तिको नास्तिको ने कहे छे के तो एक वस्तु नक्की थाय छे के इन्द्रियो नुं ज्ञान सत्य नथी ?
मूलम्
पुनर्यथापश्यजनेन नीरूजा, शङ्खः सितोऽस्तीतिनिरीक्ष्यगृह्यते । पुनश्च तेनैव रूजादितेन स गृह्यते कि न बहूत्यवर्णः | ६ गाथार्थ - वली तूं जो, के जेम नीरोगी पुरुष थी शंख सफेद छे एम जोईने ग्रहण कराय छे. कालान्तरे रोगी एवा तेज पुरुष थी बहु वर्ण वालो शंख छे, एम शुं ग्रहण नथी करतो ?
विवेचन :- मनुष्यो ने इन्द्रिय ज्ञान थी भ्रम केम थाय छे ते जणावतां कहे छे के जेम कोई नीरोगी मनुष्य थी शंख सफेद छे एम सारी रीते जोई ने निश्चय कर्या पछी ते शंख ग्रहरण कराय छे. वली थोड़ा दिवस पछी तेज मनुष्य ने कमला नो ( पीलियो) रोग थयो होय त्यार बाद तेज सफेद शंख ने घरगा रंग वालो शंख छे एम तेने शुं नथी लागतुं ? अर्थात् लागेज थे, माटे इन्द्रिय ज्ञान सत्यज होय छे एम. नथी.