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नाश थवाथीज सिद्ध पणुं प्राप्त थाय छे एटले कर्मों नो नाश थयेल होवाथी सिद्ध भगवंतो ने भुक्तावस्था, भोग्यावस्था अने भुज्य मानावस्था एम त्रणे प्रकार नी दशा होती नथी. सिद्धो ने भुक्तावस्था तो होवी जोइये न ? एवा प्रकार नो प्रश्न थाय ते स्वाभाविक छे, कारण के भुक्तावस्था एटले भोगवाई गयेलां कर्मों एवी अवस्था अने सिद्धो ने पण कर्मो तो भोगवाई गयेलां छेज, तो सिद्धोने भुक्तावस्था केम न होय ? तेना प्रत्युत्तर मां जणाववानुं के भुक्तावस्था केवली भगवंतो ना आयुष्य ना अंत समय सुधी होय छे. तेथी सिद्ध भगवंतो ने भुक्तावस्था होती नथी.
मूलम् -
मयाविचारोऽयमवाचिकर्मरगा-मजानता लोकगतंनिदर्शनैः । सामान्यलोकप्रतिबोधनाय, ज्ञेयः प्रवीणैस्तुपुराणयुक्तिभिः । ५८ गाथार्थ ज्ञान रहित एवा में साधारण लोको ना ज्ञान माटे लोकप्रसिद्ध दृष्टांतो बड़े आ कर्म नो विचार कह्यो. विद्वान पुरुषोए प्राचीन युक्तिश्रो वड़े जाणवो. विवेचनः - ग्रहियां ग्रंथकार श्री पोतानी लघुता बतावतां कहे छे के मारा मां तेवा प्रकार नुं विशिष्ट ज्ञान नथी तेथी सामान्य लोक ना प्रतिबोध माटे लोक- प्रसिद्ध दृष्टांतो वडे
कमों नो विचार कह्यो छे. परन्तु विद्वान पुरुषो तो युक्तिश्रो वड़ेज कर्म नो विचार समभी शकता होवाथी