________________
( २३१ )
होय छे, पड़तुं भोगववानुं कर्म होय छे अथवा गोल नुं दृष्टांत पण जाणवं. विवेचन:-जेम वरसाद ना पाणी ना टीपां नो समूह पृथ्वी ऊपर पड़वाथी सूकाई गयेलां होय छे, तेम जे कर्म उदय मां पाव्या बाद भोगवाई गयेलं होय छे ते मुक्त कर्म जाणवं. जे वरसाद ना पाणी नां टीपां नो समूह पृथ्वी ऊपरं पड़ीने भविष्य मां सूकाशे एटले सूकावा योग्य पाणी ना टीपां ना समूह नी जेम जे कर्म भविष्य मां उदय मां आवशे त्यारे भोगवाशे ते भोग्य कर्म-वली जे वरसाद ना पाणी नां टीपां नो समूह पृथ्वी ऊपर पड़े छे अने सूकाय छे, तेम जे कर्म वर्तमान काल मां उदय मां आवे छे ते भोगवाय छे ते भोज्यमान कर्म एटले भांगवायूँ कर्म जाणवू अथवा बीजें गोल नुं दृष्टांत जाणवं. चवाएला गोल नी जेम भुक्त कर्म, चवावा योग्य गोल नी जेम भोग्य कर्म अने चवाता एव गोलनी जेम भोज्य कर्म जाणवं.
मूलम् - संसारिजोवा वतिनोऽव्रता वा, तेषां तु कर्मत्रयमेतदस्ति । वसुन्धरायाधन बिन्दुवृन्दवत्,भुक्तंचभोग्यपरिभुज्यमानकम्।५४ कैवल्यभाजस्तुयकेमहान्त-स्तेषांतुकर्माणिशिलाग्रवृष्टिवत् । अल्पस्थितीन्येवतथापितदृशा-त्रयंतुतत्रापिगवेषरणीयम् ॥५५