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( २२१ ) त्रण दोष नो ताव पंदर दिवस नो होय छे. ए प्रमाणे ताव नो परिपाक काल पोत पोतानो अलग-अलग कहेलो छे. तेम पा करेल कर्मो नो काल पण अलग-अलग कह्यो छे. विवेचन-जेम एकज ताव अलग-अलग प्रकार नो होय छे तेथी तेनो काल पण अलग-अलग प्रकार नां होय छे. तेम कर्मो नो काल पण अलग-अलग बताव्यो छे. जेमके पित्त ना कारणे आवेल ताव दश दिवस, श्लेष्म नो ताव बार दिवस, वायु थी उत्पन्न थयेल ताव सात दिवस सुधी रहे छे अने वात, पित्त, कफ थी उत्पन्न थयेल ताव पंदर दिवस सुधी रहे छे. एम ताव नो परिपाक काल अलग-अलग होय छे. तेम ज्ञानावरणीय प्रादि कमों नो स्थिति काल पण दरेक नो अलग-अलग होय छे. मलम् :यथायथावाचरितंपुरात्मना, फलंग्रहाणामिहभुज्यतेतथा । यावत्स्वसीमांसहजादृशान्त-दर्शादियुक्तंपरिणोदकविना ।३८ कर्माणि कर्मान्तरितानि चैवं, यथात्मनानेन ननु क्रियन्ते । स्वकालमेषांपरिपाकयुक्तं,भुङ क्तेतथात्माफलमीरकंविना ।३६ गाथार्थः -जीवोए जे प्रमाणे पूर्वे शुभाशुभ करेलं होय तें प्रमाणे सूर्यादि ग्रहो न फल कोई नी पण प्रेरणा विना स्वाभाविक पोतानी मर्यादा मुजब दशा अने अंतर्दशा मां भोगवाय छे. तेम जीव थी जे प्रमाणे कर्मो अने अंतकर्मो करायेल होय ते मुजब कोई नी प्रेरणा विना तेनुं फल जीव परिपाक काले भोगवे छे.