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। २१६) कर्मों पण कोई नी प्रेरणा वगर पोतानी मेले पोत पोताना काल ने पामीने ा जीव ने सुख-दुःख पण पमाड़े छे, विवेचन:-सुगम छे. मूलम्:तथापुनःशीतलिकादिवाला-मयोद्भवातप्तिरधिश्रयेत्तनुम् । षण्मासमात्मानमिमंतथैव,श्रयन्तिकर्माणिसमेत्ययत्स्वयम् ॥३३ गाथार्थ:-वली तेवीज रीते शीतलादि बाल रोगो थी थयेल गरमी शरीर नो छः मास सुधी आश्रय ले छे. तेम कर्मो कोई नी पण प्रेरणा विना पोतानी मेले ा जीव नो
आश्रय ले छे. विवेचनः-हवे को कोई नी पण प्रेरणा विना केवी रीते जीव नो आश्रय ले छे ते बतावे छे के जेम शीतला, प्रोरी, अछबड़ा विगेरे बाल रोगो थी उत्पन्न थयेल गरमी छः मास सुधी शरीर नो आश्रय ले छे, तेम कोई नी पण प्रेरणा विना कर्मो पोतानो मेले आजीव नो आश्रय ले छे.
यक्ष्माक्षिबिन्दूद्धतपक्षघाता, अर्धाङ्गशीताङ्गमुखामया ये । सहस्त्रघस्त्र:परिपाकमेषां वदन्तिवेद्याविदितागमाविदा ।३४ इत्थंहिकेषामिहकर्मणांपरी-पाकस्वकालंसमवाप्ययत्स्वयम् । विनापरप्रेरणमत्रपण्डिताः,पठन्तिसैद्धान्तिकसिन्धुराये ।३५