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( २१७ ) इत्थं च कर्माण्यपि भूरिभेद-भिन्नस्थितीनीह भवन्ति कर्तुः। निजेनिजे कालउपागतेतु,तादृक्फलंतानिवितन्वतेस्वतः ॥२८॥ गाथार्थः- संस्कार पामेलं झेर एवा प्रकार - थाय छे के जे झेर तत्काल, एक महिना मां, बे महिना मां, छः महिना मां, वर्ष मां, बे वर्ष मां अथवा त्रण वर्षे नाश करनार थाय छे. तेम कर्ता नां घणा भेद अने अलग स्थिति वालां कर्मो पोत पोताना उदय काले पोतानी मेले तेवा प्रकार - फल विस्तारे छे.. विवेचन:-कर्मो नो उदय काल आव्ये केटला-केटला काले जीव ने कर्मो फल प्रापे छे, ते माटे विष नुं दृष्टांत आपवामां आवे छे. जेम के झेर अजीव होवा छतां पण संस्कार पामेलुं झेर कोई नी पण प्रेरणा विना कोई तत्काल, कोई एक मास मां, कोई बे मास मां, कोई छः मास मां, कोई : एक वर्ष मां, कोई बे वर्ष मां अने कोई त्रण वर्ष मां जीव ने मारनार बने छे तेम ज्ञाना वरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र अने अंतराय ए आठेय । कर्मो नी एक सौ वीस प्रकृति बंध मां अने एक सौ बावीस प्रकृति उदय मां आवे छे, अने एक सौ सुड़तालीस प्रकृति सत्ता मां होय छे. ए कर्मो नो जघन्य बंध अंत मुहूर्त अने उत्कृष्ट ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण होय छे. एम