________________
( २१५ ) एवं तु कर्माण्यपि दुष्टशिष्टा-न्यनीरकाण्येव निजात्मगानि । स्वकालमाप्यप्रकटीभवन्तियद्,दुःखंसुखंवाऽभिनयन्तिदेहिनम् । गाथार्थः-वली जेम स्वार्थ मां तत्पर एवी स्त्री पोतानी इच्छा मुजब कोई नी प्रेरणा विना पुरुष ने भजती छती, विपाक काल पूर्ण थये छते, प्रसूति करती छती सुखी अने दुःखी थाय छे. कोई नी पण प्रेरणा विना आत्मा मां रहेल अशुभ अने शुभ कर्मो पोताना काल ने पामी ने जीव ने दुःख अने सुख पमाड़े छे. विवेचन :-हवे बीजा दृष्टांत द्वारा तेज वस्तु ने पुष्ट करे छे के कर्मो कोई नी पण प्रेरणा विना विपाक काले अवश्य पोता नुं फल पमाड़े छे. जेम के कोई स्त्री पोताना स्वार्थ मां तत्पर एवो कोई नो पण प्रेरणा विना पुरुष नुं सेवन करे छे अने ज्यारे गर्म काल पूण थये छते पुत्रादि ने जन्म आपे छे, ते समये सुखी अने दुःखी थाय छे. तेम जीव नी साथे रहेलां शुभाशुभ कर्मो पण कोई नी प्रेरणा विना ज्यारे ते कर्मों नो उदयकाल आवे छे त्यारे जीव ने सुख अने दुःख आपनारां थाय छे. मूलम्:यद्वातुरःकोऽप्यगदान किलाहरन,जानातिनासावहितान हितानथ तदीय पाकस्य गते तु काले,सुखं तथा दुःखमयं लभेत ॥२५॥