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अनेक प्रकार ना भेद वालां ने अनेक प्रकार नी स्थिति वालां कर्मों कोई नी पण प्रेरणा विना पोत पोताना उदय काले जीव ने पोतानी मेले तेवा प्रकार नुं शुभाशुभ फल प्रापे छे.
मूलम् -
सिद्धोरसोवंषभवेदसिद्धः, सर्वोगृहीतोऽभ्यमितेनकेनचित् । समागतेतत्परिणाम काले, दुःखं सुखंवा भजतेतदाशकः ॥ २६ ॥ तथात्मगादुः पिटिकाचवालको, दुर्वातशीताङ्गकसन्निपाताः । स्वयं त्वमी काल बलं समेत्य, तवन्तमात्मानमतिव्यथन्ते |३०| मी तथैते ऋतवोऽपि सर्वे, स्वं स्वं च कालं समवाप्य सद्यः । मनुष्यलोकाङ्गभृतोनयन्ति, सुखंतथादुःखमिमान्स्वभावतः | ३१ एवं हि कर्माणिनिजात्मगानि, स्वकं स्वकंकालमवाप्यसत्वरम् । विनापरप्रेररणमेतमात्मकं, नयन्तिदुःखं सुखमप्यथोस्वयम् । ३२ गाथार्थ- कोई रोगीए सिद्ध के प्रसिद्ध एवो सर्व प्रकार नो ग्रहण करेल पारो परिणाम ना काले तेना भक्षक ने दुःख अथवा सुख आपनार थाय छे. शरीर मां रहेल खराब फोड़ा, वाला नामनो रोग, दुष्टवात, शिताङ्गक, सन्नि पात विगेरे आ रोगों पोतानी मेले काल बल ने पामीने ते रोग वाला ने पीड़ा आपे छे तथा प्रा सर्वे ऋतु पण पोत पोताना काले स्वभाव थी मनुष्य लोक मां मनुष्यों ने सुख-दुख आपे छे तेम पोताना आत्मा मां रहेलां
रहेल आ