________________
( २२० ) गाशार्थ : क्षय रोग, अांख नो रोग, उग्र पक्षाघात, अद्धांग वायु, शीताङ्ग रोग विगेरे रोगो वैद्यक शास्त्र · ना जाण-- कार वैद्यो पोताना ज्ञान थी ते यो नो परिपाक हजार दिवस नो गणाय छे. ते प्रकारे अहियां कोई नी प्रेरणा विना, पोताना मेले काल ने पामीने कमों नो परिपाक पण सिद्धान्त ना जारणकार पंडितोए कहेल छे. विवेचन:--दरेक वस्तु नो परिपाक कालेज थाय छे, एटले फल आपे छे. ते बतावतां जणावे छे के जेम क्षय रोग, आंख नो मोतियो, उग्र एवो पक्षाघात, अर्धांग वायु, अंग ठंडु थई जाय तेवो रोग विगेरे रोगोनो काल वैद्यक शास्त्र ना जाणकार एवा वैद्योए पोताना ज्ञान थी हजार दिवस नो बताव्यो छे. तेम कोई नी पण प्रेरणा विना पोतानी मेले कर्मों नो परिपाक पण थाय छे, एटले कर्मो फल आपे छे, एम जैन सिद्धान्त ना जाणकार पंडितो कहे छे.
तापोयथापित्तभवोदशाह, सश्लेष्मिकोद्वादशरात्रमात्रम् । सवातिकस्तिष्ठतिसप्तरानं,औदोषिकःपञ्चदशाहमानम् ।३६ एवं ज्वराणां परिपाककालः, स्वकःस्वकोऽयंपृथगेष उपतः । यथातथैषांकृतकर्मणामपि,पृथक्स्वकीयःस्थितिकालएष्यः ।३७ गाथार्श:-जेम पित्त नो ताव दश दिवस नो, श्लेष्म नो ताव बार दिवस नो, वायु सहित ताव सात दिवस नो अने